Puja Path Niyam: पूजा-पाठ या तीर्थ में हो जाए गलती, तो अवश्य करें ये एक सरल उपाय
सार
Puja Path Niyam: किसी व्रत या त्योहार के समय यज्ञ, पूजा और आरती की जाती है। यदि इस दौरान जाने-अनजाने किसी भी प्रकार की गलती हो जाती है तो क्षमा मंत्र के साथ ही प्रायश्चित के उपाय भी किए जा सकते हैं।
Puja Path Niyam: किसी व्रत या त्योहार के समय यज्ञ, पूजा और आरती की जाती है। यदि इस दौरान जाने-अनजाने किसी भी प्रकार की गलती हो जाती है तो क्षमा मंत्र के साथ ही प्रायश्चित के उपाय भी किए जा सकते हैं। इससे व्रत एवं पूजा का पूरा फल पा सकते हैं। कुछ त्योहार पर देवी या देवता की स्थापना के बाद विदाई की जाती है। ऐसे में विदाई के समय पूजा पाठ में कोई भूलचूक या गलती हो गई है, तो क्षमा जरूर मांगे। इस परंपरा का आशय यह है कि भगवान हर जगह है, उन्हें न आमंत्रित करना होता है और न विदा करना। पूजा में दीपक बूझ जाए, तेल ढुल जाए, पूजा सामग्री में कोई कमी रह जाए, पूजा में कोई कमी रह जाए या फिर अन्य किसी प्रकार की गलती हो जाए तो क्षमा मंत्र बोलें।
क्षमा मांगे
यह जरूरी नहीं कि पूजा पूरी तरह से शास्त्रों में बताए गए नियमों के अनुसार ही हो, मंत्र और क्रिया दोनों में चूक हो सकती है। इसके बावजूद चूंकि मैं भक्त हूं और पूजा करना चाहता हूं, मुझसे चूक हो सकती है, लेकिन भगवान मुझे क्षमा करें। मेरा अहंकार दूर करें, क्योंकि मैं आपकी शरण में हूं। पूजा आरती के अंत में जिस भी देवी या देवता की पूजा की जा रही है, सबसे पहले उनसे क्षमा मांगे। इसके बाद क्षमा मंत्र बोलें।
पूजा में क्षमा मांगने के लिए बोला जाता है ये मंत्र
आवाहनं न जानामि न जानामि तवार्चनम्।
पूजां श्चैव न जानामि क्षम्यतां परमेश्वर॥
मंत्रहीनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं सुरेश्वरं।
यत्पूजितं मया देव परिपूर्ण तदस्मतु।।
अर्थात: हे प्रभु। न मैं आपको बुलाना जानता हूं और न विदा करना। पूजा करना भी नहीं जानता। कृपा करके मुझे क्षमा करें। मुझे न मंत्र याद है और न ही क्रिया। मैं भक्ति करना भी नहीं जानता। यथासंभव पूजा कर रहा हूं, कृपया मेरी भूलों को क्षमा कर इस पूजा को पूर्णता प्रदान करें।
प्रायश्चित के उपाय
यदि कोई गंभीर गलती हुई हो तो 43 दिनों तक नंगे पाव मंदिर जाएं।
मंदिर में देवता के समक्ष 108 बार साष्टांग प्रणाम करें।
प्रायश्चित के लिए भगवान कार्तिकेय और वरुणदेव की पूजा करके उनसे क्षमा मांगें।
श्रीमद्भागवत जी के षष्टम स्कन्ध में शुकदेव जी ने महाराज परीक्षित को प्रायश्चित के उपाय बताएं हैं उसे पढ़ें।
प्रायश्चित के लिए पंचबलि कर्म करें और दान दें।
देव पूजा, मंदिर या तीर्थ संबंधित 32 सेवा अपराध
शास्त्रों में 32 तरह के सेवा अपराध बताएं गए हैं। इन्हें जानकर भी पूजा या देव सेवा की गलतियों से बचा जा सकता है।
1. सवारी पर चढ़कर अथवा पैरों में खड़ाऊ पहनकर श्री भगवान के मंदिर में जाना।
2. रथयात्रा, जन्माष्टमी आदि उत्सवों का न करना या उनके दर्शन न करना।
3. श्रीमूर्ति के दर्शन करके प्रणाम न करना।
4. अशौच-अवस्था में दर्शन करना।
5. एक हाथ से प्रणाम करना।
6. परिक्रमा करते समय भगवान के सामने आकर कुछ देर न रुककर फिर परिक्रमा करना अथवा केवल सामने ही परिक्रमा करते रहना।
7. श्री भगवान के श्रीविग्रह के सामने पैर पसारकर बैठना।
8. दोनों घुटनों को ऊंचा करके उनको हाथों से लपेटकर बैठ जाना।
9. मूर्ति के समक्ष सो जाना।
10. भोजन करना।
11. झूठ बोलना
12. श्री भगवान के श्रीविग्रह के सामने जोर से बोलना।
13. आपस में बातचीत करना।
14. मूर्ति के सामने चिल्लाना।
15. कलह करना
16. पीड़ा देना।
17. किसी पर अनुग्रह करना।
18. निष्ठुर वचन बोलना।
19. कम्बल से सारा शरीर ढंक लेना।
20. दूसरों की निंदा करना।
21. दूसरों की स्तुति करना।
22. अश्लील शब्द बोलना।
23. अधोवायु का त्याग करना।
24. शक्ति रहते हुए भी गौण अर्थात सामान्य उपचारों से भगवान की सेवा-पूजा करना।
25. श्री भगवान को निवेदित किए बिना किसी भी वस्तु का खाना-पीना।
26. ऋतु फल खाने से पहले श्री भगवान को न चढ़ाना।
27. किसी शाक या फलादि के अगले भाग को तोड़कर भगवान के व्यंजनादि के लिए देना।
28. श्री भगवान के श्रीविग्रह को पीठ देकर बैठना।
29. श्री भगवान के श्रीविग्रह के सामने दूसरे किसी को भी प्रणाम करना।
30. गुरुदेव की अभ्यर्थना, कुशल-प्रश्न और उनका स्तवन न करना।
31. अपने मुख से अपनी प्रशंसा करना।
32. किसी भी देवता की निंदा करना।
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