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वैकुंठ चतुर्दशी 2025: वैकुंठ चतुर्दशी कल, इस दिन हरि-हर की संयुक्त आराधना मोक्ष

  


वैकुंठ चतुर्दशी 2025: वैकुंठ चतुर्दशी कल, इस दिन हरि-हर की संयुक्त आराधना मोक्ष



सार

वैकुंठ चतुर्दशी 2025: कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को वैकुंठ चतुर्दशी का पर्व मनाया जाता है। यह दिन भगवान विष्णु और भगवान शिव दोनों की संयुक्त पूजा के लिए अत्यंत पवित्र माना गया है।


विस्तार


वैकुंठ चतुर्दशी 2025: कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को वैकुंठ चतुर्दशी का पर्व मनाया जाता है। यह दिन भगवान विष्णु और भगवान शिव दोनों की संयुक्त पूजा के लिए अत्यंत पवित्र माना गया है। इस दिन हरि (विष्णु) और हर (शिव) के दर्शन का विधान है। शास्त्रों के अनुसार जो भक्त इस दिन भगवान विष्णु की पूजा करता है, उसे स्वर्ग के समान सुखों की प्राप्ति होती है और जीवन के अंत में वैकुंठ धाम में श्रीहरि का लोक स्थान प्राप्त होता है। इस बार यह पर्व 4 अक्टूबर को मनाया जाता है।


वैकुंठ विधि चतुर्दशी की पूजा
इस दिन प्रातः नदी ब्रह्मा में पवित्र गंगा या किसी पवित्र में स्नान करना चाहिए। स्नान के बाद भगवान विष्णु और भगवान शिव की प्रतिमाओं को एक साथ स्थापित कर, दोनों का पंचामृत से अभिषेक किया जाता है। तुलसी, कमल पुष्प, धूप, दीप और नैवेद्य से आरती की जाती है। 'ॐ नमो नारायणाय' और 'ॐ नमः शिवाय' मंत्र के जाप से विशेष फल मिलता है। रात्रि में दीपदान करने और हरि-हर की कथा सुनने से विशेष पुण्य मिलता है। व्रत रखने वाले भक्त को व्रत उपवास आश्रम के समय फलाहार करना चाहिए।



वैकुंठ चतुर्दशी की कथा
पौराणिक कथाओं के अनुसार, काशी में एक बार सृष्टि के पालनहार भगवान विष्णु देवाधिदेव महादेव की पूजा की जाती है। उन्होंने मणिकर्णिका घाट पर स्नान कर 1000 स्वर्ण कमलों से शिवजी की आराधना का संकल्प लिया। पूजा के समय भगवान शिव ने अपनी परीक्षा लेने के लिए एक स्वर्ण कमल कम कर दिया। विष्णु जी को 'पुण्डरीकाक्ष' और 'कमलनयन' कहा जाता है। जब उन्हें एक पुष्प की कमी महसूस हुई, तो उन्होंने अपने कमल के समान दर्शन धारण करने का निश्चय किया।
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विष्णुजी की इस अतुलनीय भक्ति से प्रसन्न महादेव प्रकट हुए और बोले- "आज से इस तिथि को कुंठ चतुर्दशी कहलौए। जो भी भक्त इस दिन भक्त से पूजन करेगा, उसे वैकुण्ठ लोक की प्राप्ति होगी।"




सुदर्शन चक्र की पहचान
महादेव ने विष्णुजी की भक्ति से प्रसन्न होकर उन्हें सुदर्शन चक्र प्रदान किया, जिसमें अहा करोड़ों सूर्यों के समान था। एक अन्य कथा के अनुसार, इसी दिन भगवान विष्णु ने अपने द्वारपाल जय-विजय को आदेश दिया कि वे वैकुंठ के द्वार के अनुसार सबके लिए खोल दें। इस दिन जो व्यक्ति व्रत रखता है वह हरि और हर की पूजा करता है, उसे यमलोक की यातनाओं से मुक्ति मिलती है, चौदह हजार पाप विनाश होते हैं और अंत में मोक्ष की प्राप्ति होती है। Baba Ji Kaa Website







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